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भटकती आत्मा भाग - 3

भटकती आत्मा  भाग – 3

अपनी चंचल सखी संध्या रानी को प्रेम पूर्वक विदा कर रजनी अपनी किशोरावस्था की सुलभ लज्जा से  बार-बार श्यामल आंचल को संभाल रही थी । वह अपने प्रियतम राकेश से मिलने के लिए व्याकुल सी हो रही थी । परन्तु राकेश रजनी की व्याकुलता का आनंद उठाने का भरसक प्रयत्न कर रहा था । आखिर प्रतीक्षा की घड़ी समाप्त हुई राकेश गगन के गवाक्ष दे झांकता हुआ रजनी को दृष्टिगोचर हो ही गया । कुछ आगे आई,औरअपने प्रियतम को आलिंगन में ले लिया । राकेश खिलखिला कर विहँस उठा,वसुधा के आंचल पर ! वन प्रांत के अणु अणु पर !! रजनी के हृदय का कोना कोना आह्लादित हो उठा ! उसने राकेश को अपनी मांग में सजा लिया l प्रकृति के इस लुभावने परिवेश में पवन भी अपनी हरकत करने से बाज नहीं आया l वह जंगली लताओं,वृक्षों की शाखाओं तथा झाड़ियों के आंचल को  हौले हौले छेड़ रहा था l  कभी-कभी जंगली पशु तथा पक्षियों की आवाज पर्वत की घाटियों में गूंजता था तथा वन प्रांत को कँपा देता था l पत्तों के गिरने की खड़खड़ की आवाज भी शांति में बाधक बन रही थी l
  मनकू की एक भेड़ जंगल में खो गई थी l इस समय वह जंगल के हर कोने में घूम घूम कर अपनी भेड़ को खोजने में व्यस्त था l उसको प्रकृति परी के मनमोहक  रूप विन्यास से कोई मतलब नहीं था l उसके लिए यह सामान्य बात थी l वन का चप्पा चप्पा उसका जाना पहचाना था l जंगली हिंस्रक जानवरों का उसे भय नहीं था l फिर भी हिफाजत के लिए जहर से  बुझा तीर एवँ धनुष अपने कंधे पर लटकाए हुए था वह l
   शाम को घर जाने पर पता चला था कि एक भेड़ गिनती में कम थी l वह उसी समय घर से निकल पड़ा था,भेड़ की खोज में l यही तो उसके परिवार की मुख्य आजीविका थी l उसके खेत भी थे परंतु अनाज बहुत कम उपजता था l आय का मुख्य साधन भेड़ ही थे l उसके पिता वृद्ध हो गये थे l परिवार में माता-पिता तथा दो भाई थे l मनकू से  छोटा एक और भाई था l परिवार का मुख्य दायित्व मनकू के ऊपर ही था l एक बहन की उसे बहुत अभिलाषा थी,परन्तु ईश्वर को यह मंजूर नहीं था,ईश्वर ने उसे बहन नहीं दी | इसलिए वह पड़ोस की रहने वाली जानकी को बहन के समान चाहता था | 
उसके साथ बचपन से ही खेलता हुआ यौवन की दहलीज पर कदम रखा था | वह बहुत गरीब थी,अपने वृद्ध पिता की इकलौती पुत्री,दाने-दाने को तरस जाती थी कभी-कभी; तब मनकू अपने घर से रोटी ले जाकर उसे खिलाता था l इस समय भी वह जानकी के संबंध में ही सोच रहा था l कल भेड़ के ऊन को बेचकर रुपए प्राप्त करेगा उसमें से एक साड़ी अपनी बहन जानकी के लिए लायेगा l बिचारी देखकर खुश हो जाएगी l वह स्वाभिमानी है,उसे लेना पसंद नहीं करेगी,वह कसम देगा फिर तो जानकी को लेना ही होगा;हाँ लेगी कैसे नहीं | 
    अचानक बाघ के कर्कश गर्जन ने उसकी कल्पना कली को तोड़ डाला l जंगल का जर्रा जर्रा थरथरा उठा l मनकू के हाथ हरकत में आए,आवाज की दिशा में उसने तीर छोड़ा; परन्तु यह क्या ! किसी लड़की की मर्म भेदी चीत्कार उसकी आत्मा को कँप कँपा दिया l ओह... सेव मी  s  s ...........कहीं समीप से ही यह आवाज आई थी l दौड़ पड़ा मनकू आवाज की दिशा में l उसी दिशा से व्याघ्र का गर्जन भी तो कर्ण गोचर हुआ था l शायद उसने किसी लड़की की जीवन लीला समाप्त तो नहीं कर डाला ! परन्तु यह कैसे हो सकता है, गर्जन के कुछ ही क्षणों बाद तो उसने तीर छोड़ा था व्याघ्र को मौत के मुंह में होना चाहिए ! कहीं उसके बदले में यह लड़की ही अपने प्राणों से हाथ ना धो बैठी हो,मेरे तीर से ! परन्तु उसका निशाना अचूक होता है,शब्दबेधी बाण चलाने की कला में वह अपनी बस्ती भर में प्रसिद्ध है l यह सोचता हुआ मनकू घटनास्थल पर पहुंच गया l
उसकी आंखें आश्चर्य से फैल गईं ! एक अंग्रेज किशोरी के श्वेत मुख पर उसकी आंखें स्थिर हो गईं l शायद वह चेतना खो चुकी थी l उसने अपनी निगाहें उसके मुख पर से हटा कर यत्र-तत्र बिखेरी l लगभग 10 गज की दूरी पर एक व्याघ्र को उसने देखा l वह शायद मौत के मुंह में प्रवेश कर चुका था l रक्त की मोटी रेखा वसुधा के आंचल को रंजित कर रही थी l उसने अपनी निगाह वहां से हटाकर पुनः किशोरी पर फेंका l क्या करे,कैसे उसकी चेतना वापस लाए ! यह सोच ! ही रहा था कि अश्व की हिनहिनाहट उसके कर्ण पटल को उद्वेलित करने लगा l मनकू को यह समझते देर न लगी कि यह अंग्रेज किशोरी अश्व पर सवार होकर ही यहां तक आई थी l परन्तु इतनी रात में यहां आने का क्या प्रयोजन हो सकता है,इस प्रश्न का उत्तर उसे नहीं मिल रहा था l वह किशोरी की मूर्छित अवस्था को दूर करने का उपाय सोचने लगा l यहां पानी मिलना भी संभव न था l वह अपने अंगोछे से उसके मस्तक को सहलाने लगा l मनकू ने ध्यान से उसे पहली बार देखा l उन्नत यौवन शिखा उस के युवती होने का  प्रमाण प्रस्तुत कर रहे थे l उसकी बादामी जँघा विवस्त्र हो गई थी l लज्जा से मनकू की निगाहें वहाँ से हट उसके मुख पर केंद्रित हो गईं l उसने अपने अंगूठे से विवस्त्र जंघाओं को ढक दिया l अपना दक्षिण कर उसके मुख मंडल पर धीरे-धीरे फिराने लगा l इससे भी कुछ लाभ न हुआ l मनकू घबड़ा गया फिर वह एक वृक्ष की छोटी सी शाखा को तोड़ लाया,और उसी छोटी शाखा से आहिस्ता आहिस्ता किशोरी को हवा करने लगा,साथ ही साथ उसके ललाट पर अपना एक हाथ भी रख दिया और उसे धीरे-धीरे दबाने लगा l कुछ देर के बाद युवती की आंखें पलकों की ओट से बाहर झांकने लगीं l आश्चर्य मिश्रित स्वर में युवती की आवाज फूट पड़ी - "हु ? हु आर यू एंड हाउ एम आई हियर "? 
मनकू के कर्ण गह्वर में यह आवाज शहद सा प्रविष्ट हुई,परन्तु उसकी समझ में कुछ न आया l मुस्कुराहट की बिजली क्षणभर मनकू के मुख मंडल पर प्रकाशित हुई l उसने कहा - "लड़की तुम इतनी रात में इस जंगल में क्या लेने आई थी ? अपनी गलती सुधारो और गाली मत बको"!
    हम चोर नाईं है,समझा टोम ! जंगल में राट का सीनरी देखना मांगटा था,इसलिए आया था l टोम हमारा लैंग्वेज नहीं समझटा हाय,और गाली बोलटा हाय" l 
     मनकू  -   "अच्छा अब समझा तुम अपनी भाषा में बोल रही थी | खैर तुमने मुझे क्या कहा था अपनी भाषा में"?
    मनकू ने उत्सुकता से पूछा |
  " हम बोलटा था कि टोम कौन हाय और हम यहाँ कैसे आया"?
   मनकू -   "ओह समझा,मैं जंगल के समीप ही रनिया बस्ती का एक आदमी हूँ l और तुम यहाँ कैसे आई मैं क्या जानू"?

  लड़की - "अमारा चाइल्डहुड से ही सिनरी देखने का हॉबी है l आज भी आया था लेकिन यह ब्लडी टाइगर अमको खाना मांगता था l अम डर गया सेंसलेस हो गया"|
    "ओह अच्छा, बाघ को तो मैंने मार डाला"|
  टोम बहुत ब्रेव बॉय है, अमारा लाइफ टोम बचाया है l अम थैंक देना मांगटा हाय"|
  मनकू -   "थैंक की जरूरत नहीं | अब भली लड़की जल्दी से यहाँ से फूटो"|
" अम टुम्हारा बाट नई समझा"|
  मनकू  -  "तुम यहाँ से गो आउट हो जाओ"|
टुम अमको रेजिडेंस नहीं पहुंचाएगा क्या"?
   मनकू  -   "मैं तुम्हारा सर्वेंट नहीं हूँ, समझी"!
 "अच्छा अम चला जाता हाय"
कहती हुई वह अश्व पर सवार हो गयी l
" गुड बाय माय स्वीट फ्रेंड" कहती हुई उसने अश्व को आगे बढ़ाया,परन्तु उसी क्षण अश्व की रश्मि को झपट लिया मनकू ने l उसने कहा -  
  " तुम मुझे गाली देकर भाग रही हो"?
   नहीं तो अम टोमको सलाम बोला है l  गुड बाय का मतलब सलाम होटा हाय"|
   " ओह गुड बाय" -  कहते हुए मनकू के मुख पर प्रसन्नता थिरक उठी l उसकी आँखे तब तक अश्व के पीछे ही लगी रहीं  जब तक वह आंखों से ओझल न हो गया  l मनकू विशेष मार्ग पर अपनी बस्ती की ओर चल पड़ा,परन्तु उसे ऐसा प्रतीत होता था मानो जंगल में वह कुछ खोकर जा रहा है l भेड़ नहीं,कुछ और ही l परन्तु वह क्या चीज खो चुका है समझ नहीं पाया l

                     क्रमशः
  निर्मला कर्ण

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5 Comments

madhura

17-Aug-2023 08:04 PM

Very nice

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hema mohril

16-Aug-2023 05:10 PM

Nice

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Babita patel

16-Aug-2023 04:57 PM

Nice

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